Wednesday, May 12, 2010

जीवन के बदलते रंग

इंसान का जीवन तरह-तरह के बदलावों से भरा हुआ होता है। जब हम बच्चे होते हैं तो अपने से बड़ों को देख कर हमेशा यही सोचते रहते हैं की हम भी कब उनके जैसे बड़े होंगे और जब हम बड़े हो जाते हैं तो पीछे मुद कर देखने से गुज़रे हुए वक़्त का पता ही नहीं लगा पाते की हम कब उस लड़कपने के बचपन से निकल कर इन जिम्मेदारियों के लिए तयार हो जाते हैं। इसी तरह कब हम अपनी जवानी के दिनों से निकल कर बुढ़ापे में कदम रख देते हैं और जिस जीवन से हमने तरह-तरह के ताजुर्वे किये हुए होते हैं उन्ही राहों पर हम नयी पीड़ी को चलते हुए और उनसे आगे बड़ते हुए देखते हैं। जीवन के बदलावों में केवल यही एक बड़ा बदलाव नहीं है हमारे व्यवहार, प्रतिक्रियाओं, विचारों में और भी कई बदलाव आते हैं। पर यही जरुरी नहीं की ये बदलाव खुद व खुद आ जाते हैं वल्कि कई बदलाव हमरी खुद की पहलों और समझ से आते हैं। मेरा ताजुरवा कोई जादा बड़ा तो नहीं है पर मै कई ऐसे लोगों से मिला हूँ जो शायद इस बारे में कभी सोचते भी नहीं है की शायद उनको खुद के अन्दर किसी बदलाव की जरुरत है जो शायद एक अच्छे इंसान या यूँ कहूँ की एक इंसान की आधार भूत व्यवहार में होने जरुरी होते हैं। पर इस व्यवहारिक जीवन को देखने के बाद भी लोग पता नहीं क्यूँ खुद को लेकर इतना नहीं सोचते हैं की क्या उनका ये व्यवहार दूसरों को पसंद आता है या नहीं।
पर शायद उन्हें ये सोचना चाहिए की अगर वो अपने आस पास के वातावरण को बदलना चाहते हैं तो ये शायद उनके लिए सबसे बड़ी पहल होगी। क्यूंकि मुझे लगता है की हमें अपने आस पास के वातावरण को बदलने की जरुरत है और इसकी शुरुआत खुद हमसे ही होगी.